हीमोग्‍लोबिन 7 से नीचे न पहुंचे तो खून चढ़ाने की जरूरत नहीं

हीमोग्‍लोबिन 7 से नीचे न पहुंचे तो खून चढ़ाने की जरूरत नहीं

रक्‍तदान महादान। ये नारा आप लगातार सुनते रहते हैं मगर देश में रक्‍तदान की स्थिति की जानकारी शायद आपको नहीं होगी। हमारे देश में सालाना करीब एक करोड़ 20 लाख यूनिट खून की जरूरत पड़ती है मगर इसके मुकाबले करीब 99 लाख यूनिट खून ही रक्‍तदान के जरिये मिल पाता है। यानी देश में सालाना करीब 21 लाख यूनिट खून की कमी रह जाती है। इसमें भी शहरों में तो फि‍र भी जरूरतमंदों को खून का इंतजाम किसी न किसी तरह हो जाता है मगर गांवों में हालत ज्‍यादा खराब है।

एक फीसदी आबादी करे रक्‍तदान

विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के अनुसार किसी भी देश की कुल आबादी का एक फीसदी हिस्‍सा यदि रक्‍तदान करे तो वह पूरे देश की सालाना स्‍वस्‍थ रक्‍त की जरूरत को पूरा कर सकता है। यदि ऐसा नहीं होता है तो दूसरा उपाय यह है कि किसी को बहुत जरूरी होने पर खून चढ़ाया जाए। यदि किसी स्‍वस्‍थ व्‍यक्ति में खून की कमी हो जाए तो आयरन की सामान्‍य गोलियों या सप्‍लीमेंट के जरिये खून की कमी को पूरा किया जाना चाहिए।

इतने दिनों तक सुरक्षित रहता है खून

विशेषज्ञों के अनुसार एक यूनिट में 450 मिलीग्राम खून होता है और इसके जरिये तीन लोगों की जान बचाई जा सकती है। आमतौर पर खून को यदि इसके अलग-अलग कंपोनेंट में न बांटा जाए तो इसे 35 दिन तक सुरक्षित रखा जा सकता है बशर्ते भंडारण के लिए सीपीडीए एंटी कोगूलेंट सॉल्‍यूशन के इस्‍तेमाल के साथ 2 से 4 डिग्री तक ठंड में रखा जाए।

कौन से कौन कंपोनेंट में बांटा जाता है खून को

खून को प्‍लेटलेट कॉन्‍सन्‍ट्रेट, प्‍लेटलेट एफेरिसेस, प्‍लेटलेट रिच प्‍लाज्‍मा, पैक्‍ड सेल्‍स, फ्रेश फ्रोजेन प्‍लाज्‍मा, क्रायो एंटीहेमोफीलिक प्‍लाज्‍मा और क्रायो पूअर प्‍लाज्‍मा में विभाजित किया जा सकता है। इन सबों को अलग-अलग अवधि के लिए संरक्षित किया जा सकता है। प्‍लेटलेट कॉन्‍सन्‍ट्रेट, प्‍लेटलेट एफेरिसेस और प्‍लेटलेट रिच प्‍लाज्‍मा को पांच दिनों त‍क जबकि पैक्‍ड सेल्‍स को 35 दिन, फ्रेश फ्रोजेन प्‍लाज्‍मा को एक साल, क्रायो एंटीहीमोफीलिक फैक्‍टर को एक साल और क्रायो पूअर प्‍लाज्‍मा को 5 साल तक संरक्षित किया जा सकता है।

खून चढ़ाने में किन बातों का रखें ध्‍यान

देश के जाने-माने हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्‍टर के.के. अग्रवाल कहते हैं कि देश में रक्‍त की कमी को देखते हुए ये जरूरी है कि ब्‍लड ट्रांसफ्यूजन में एहतियात बरती जाए। यदि किसी मरीज को सिर्फ एक यूनिट खून की जरूरत है तो उसे खून चढ़ाने से परहेज करना चाहिए। यदि किसी मरीज को दो यूनिट की जरूरत हो तो सिर्फ एक यूनिट चढ़ाना चाहिए। यदि मरीज का हीमोग्‍लोबिन का स्‍तर 7 से ऊपर है और मरीज की हालत स्थिर बनी हुई है तो उसे खून चढ़ाने की जरूरत नहीं होती है। उनका कहना है कि इन दिशा-निर्देशों का पालन चिकित्‍सकों को करने की जरूरत है क्‍योंकि मरीज या उनके परिजनों को इस बारे में ज्‍यादा जानकारी नहीं होती।

कुछ अपवाद भी हैं

जिन मरीजों में लगातार 10 से कम हीमोग्‍लोबिन का लक्षण हो उनमें हीमोडायनेमिक अस्थिरता को दूर करने के लिए खून चढ़ाना पड़ता है।

गंभीर हृदय रोग के लक्षण वाले मरीजों को हीमोग्‍लोबिन 8 से नीचे जाने पर खून चढ़ाने की जरूरत होती है।

रक्‍तदान से पहले कुछ बातों का ध्‍यान रखें

रक्‍तदाता का ब्‍लड प्रेशर स्थिर होना चाहिए, हीमोग्‍लोबिन पर्याप्‍त और वजन भी संतुलित हो।

रक्‍तदान से पहले कुछ हलका भोजन करें और खून देने से पहले की रात में शराब और सिगरेट से दूर ही रहें।

रक्‍तदान के बाद पानी या अन्‍य तरल पदार्थ पर्याप्‍त मात्रा में लें। हालांकि कार्बोनेटेड सॉफ्ट ड्रिंक से परहेज की करें।

रक्‍तदान के बाद ज्‍यादा मेहनत वाला काम न करें क्‍योंकि शरीर से खून निकाले जाने के बाद आमतौर पर एक चक्‍कर आने की आशंका रहती है।

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